पेड़ बचाने के लिए 363 लोगो ने दे दी अपनी जान
पेड़ बचाने के लिए 363 लोग अपनी जान दे देते हैं राजस्थान की ये खूबी है ये क्या कहानी क्या है आप पूरी दुनिया में ऐसा उदाहरण कहीं नहीं सुनेंगे कि पेड़ के लिए कोई कट जाए ।
तो आइऐ कहानी सुनते हैं।
ये खेजड़ला गांव की घटना है जो राजा को महल के लिए लकड़िया चाहिए थी तो उन्होंने सेनापति को बोला कि इतनी लकड़िया चाहिए तो तो उसको काटने के लिए जब वो गए राजा के सेनापति तो वहां एक अमृता देवी विश्नोई महिला थी उन्होने कहा कि इसको काटने से पहले मेरा सर काटना होगा तो सेनापति ने उनको काट दिया सर काट दिया तो उस मां को कटते देखकर वो बेटियां भी पेड़ से चिपक गई उनकी तीन बेटियों का भी उन्होंने काट दिया सेनापति ने लेकिन पेड़ नहीं छोड़ा उन्होने पेड़ नहीं छोड़ा तो वैसे करते करते 363 लोग कट गए उस पेड़ को बचाने के लिए
पर्यावरण संरक्षण में बिश्नोई जाति का योगदान
बिश्नोई समाज ने पर्यावरण संरक्षण के लिए हमेशा से अपनी सक्रियता दिखाई है। यह आदर्शों के लिए एक प्रतिबद्धता है, जिसमें पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं को बचाना शामिल है।
खेजड़ली आंदोलन
यह आंदोलन 1730 में शुरू हुआ था, जब बिश्नोई समुदाय ने खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था। इस आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विश्व को इस दिशा में जागरूक किया।